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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

16. मैं नशे में हूं 


बात उन दिनों की है जब पूरा देश प्रथम लॉकडाउन में "बंद" था । हम घर में पड़े पड़े "मुटिया" रहे थे और श्रीमती पर काम की दोहरी मार पड़ रही थी । ऐसे में उन्होंने हमें भी "मजदूरी" पर लगा लिया । वे इतनी भली हैं कि हम जैसे मजदूरों को रोटी के साथ साथ कभी कभी गुड़ की एक डली भी दे देती हैं । जिस दिन हमें गुड़ की डली मिल जाती है उस दिन कितनी दुआएं निकलती हैं आत्मा से , बता नहीं सकते हैं ।


कल रात श्रीमती जी की फिर से कृपा हो गई थी और उन्होंने खाने में रोटी के साथ गुड़ की एक डली भी रख दी थी । कसम से मज़ा आ गया । गुड़ खा के ऐसा नशा चढ़ा कि उसने उतरने का नाम ही नहीं लिया । मुझे पता ही नहीं था कि गुड़ में भी इतना नशा होता है । एक बार मेरे बाबा बता रहे थे कि जो चीज हमारे पास नहीं होती है , अगर वो मिल जाये तो ऐसा नशा देती है कि सौ दारू की बोतलें भी कम पड़ जाए । आदमी नशे में मस्त हो जाता है । आज वो बात सच लगने लगी थी ।


मेरा हैंगोवर अभी खत्म नहीं हुआ था । अचानक मोबाइल की घंटी ने सारा नशा उतार दिया । उधर से " निराशा "भाभी बोल रही थी । रोते रोते बोली ।


" भैया जी , हम लुट गये ,बर्बाद हो गये । हमें बचा लो भैया जी "


मैं सकते में आ गया । मुझे काटो तो खून नहीं । घबरा के मैंने कहा


" तनिक धीरज रखो भाभी । बताओ तो सही कि हुआ क्या है "


"क्या बतायें भैया । हमारो तो जीवन बर्बाद ही हो गया है । वो चिंटू के पापा ... " वे अपना वाक्य पूरा कर पाती इससे पहले ही वे सुबक पड़ीं


इस घटना से मैं घबड़ा गया और हड़बड़ी में बोला , "क्या हुआ पियक्कड़ सिंह को । वो सकुशल तो है ना " ?


" क्या खाक सकुशल हैं ? हमसे तो उनकी दशा देखी ही नहीं जा रही है " । वो हिलकी लेते लेते बोलीं ।


मुझे मामला बहुत सीरियस नजर आया पर मैं कर भी क्या सकता था ? लॉकडाउन में जो फंसा हुआ था । पहले सारी बात तो पता चले उसके बाद देखेंगे कि क्या किया जा सकता है क्या नहीं ? इसके लिए पहले सारा वाकया जानना जरूरी था ।


" पहले पूरी बात तो बताओ । फिर सोचेंगे कि क्या करना है " ? मैंने समझाते हुए कहा ।


वो रोते रोते बोली , " भैया , चिंटू के पापा भांगड़ा कर रहे हैं "


मैंने आश्चर्य से पूछा " भांगड़ा कर रहे हैं ? और वो भी इस लॉकडाउन में ? लगता है कि उनको घर बैठे ही "कारूं का खजाना" मिल गया है । अरे , भांगड़ा कर रहे हैं तो करने दो उन्हें । यह तो अच्छी बात है । इसमें रोने का क्या है जो आप ऐसे रोये जा रही हो " ?


" आप समझ नहीं रहे हो भैया जी । ये आज सुबह से ही भांगड़ा कर रहे हैं । चार घंटे हो गये हैं इन्हें भांगड़ा करते करते, नॉनस्टॉप । अब तो लाइट भी चली गई है । पीपा पीट पीट कर ही भांगड़ा कर रहे हैं । मुझे तो ऐसा लग रहा है कि थोड़ा सा सरक गये हैं शायद "


उनकी बात सुनकर मैं थोड़ा चिंतित हुआ । मैं पियक्कड़ सिंह को बरसों से जानता हूं । दिल का बहुत नेक बन्दा है । यारों का यार है ,दिलदार है । बचपन में इसका नाम प्यारा सिंह था लेकिन पीने की आदत ऐसी पड़ी कि रात और दिन , सुबह और शाम । बस एक ही काम , बस एक ही काम । हाथ में हरदम कम से कम एक जाम । इस आदत के कारण उसके घरवालों ने उसका नाम पियक्कड़ सिंह कर दिया था । तब से  सब लोग उसे पियक्कड़ सिंह ही कहते हैं । अब तो खुद उसे अपना असली नाम पता नहीं है । एक दिन मैंने उसे आवाज दी " प्यारा सिंह " तो वह इधर-उधर देखकर बोला , " पा जी , ये प्यारा सिंह कौन है ?" मैंने कहा " सॉरी, मैंने गलती से तुझे प्यारा सिंह बोल दिया था " । वो बहुत नाराज़ हुआ और कहने लगा , " पा जी । आप चाहे मुझे गाली दे दो पर मेरा नाम पियक्कड़ सिंह ही बोला करो । इस नाम में एक नशा सा है और आप तो जानते ही हैं कि मैं नशे से कितना प्यार करता हूं ? " । तब से लेकर आज तक मैंने फिर कभी गलती नहीं की । मैं उसे पियक्कड़ सिंह ही कहता हूं अब । वह पीकर के भांगड़ा करता है ये तो जानता था पर इस तरह से घटिया हरकत पर उतर आयेगा कि पीपा पीट पीट कर नाचेगा , यह मैंने कभी सोचा नहीं था । पर वह पीपा क्यों पीट रहा था, कुछ पता नहीं था इसलिए मैंने निराशा भाभी से पूछा


" एकशबात  तो बताओ भाभी कि हुआ क्या था ?क्या आपने सुबह-सुबह ही मायके जाने का शुभ समाचार सुना दिया था उसको "?


"नहीं भैया जी , ऐसी कोई बात नहीं थी । वो तो सुबह सुबह अखबार पढ़ रहे थे । अचानक जोर से बोल पड़े ' ओये , बल्ले बल्ले ' और टेप चलाकर भांगड़ा करने लग गये । पहले तो मैं खुश हो गई उनको भांगड़ा करते देखकर । चलो डेढ़ महीने तक घर में पड़े रहने के बाद भी ये भांगड़ा करने लायक तो हैं अभी । मैं तो सोचती थी कि इतने दिन लॉकडाउन में बंद रहने के बाद न तो ये तीन में रहे हैं और न तेरह में । लेकिन ये तो भांगड़ा करते गये करते गये । इतने में लाइट भी चली गई । फिर ये कबाड़ से एक पुराना पीपा उठा लाये और उसे ही पीट पीट कर फिर से भांगड़ा करने लग गए " ।


मुझे अब पियक्कड़ सिंह से ईर्ष्या होने लगी थी । जब लोग कोरोना की दहशत से थर थर कांप रहे हों , लॉकडाउन में फंसे पड़े हों तब उसे कौन सा ऐसा कारूं का खजाना हाथ लग गया है कि उसके पैर रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं ? पर अब ये समय जलने का नहीं है । इस पर फिर कभी देखा जायेगा । अभी तो उसके भांगड़ा करने का  कारण तो खोजना पड़ेगा ना । लॉकडाउन के कारण मैं जा तो नहीं सकता था मगर फोन से तो कुछ कर,सकता था । इसलिए मैंने उनसे कहा


" एक बार आप मेरी पियक्कड़ सिंह से बात करा सकतीं हैं क्या "


वो सुबकते हुए बोली , "जी,  कोशिश करती हूं "


और उन्होंने पियक्कड़ सिंह को मोबाइल दे दिया । पियक्कड़ सिंह ने पहले बात करने से मना कर‌ दिया लेकिन जब उसे कहा गया कि मैं बात करूंगा तो वह बात करने को राजी हो गया । चाहे किसी की बात माने या ना माने लेकिन मेरी बात आज तक कभी टाली नहीं पियक्कड़ सिंह ने । सोच कर गर्व हुआ कि घर में चाहे अपनी औकात दो कौड़ी की नहीं है लेकिन बाजार में इज्जत बहुत है । सच में सीना फूलकर कुप्पा हो गया । घोर कलयुग में अगर ऐसा "भक्त" कहीं मिल जाये जो अपनी पत्नी की बात चाहे माने या ना माने लेकिन आपकी बात टाले नहीं , तो भक्त और भगवान की सी फीलिंग होने लगती है ।


मैंने फोन पर कहा " अरे , पियक्कड़ सिंह । आज क्या कोई खजाना हाथ लग गया है जो इतना जश्न मना रहा है ? "


वो भांगड़ा करते करते बोला । " बस भाईसाहब पूछो ही मत । आज तो आनंद आ गया "


" तू अकेला अकेला ही वहां पर आनंद ले रहा है और हम लोग यहां लॉकडाउन में सड़ रहे हैं "


" आप भी भांगड़ा पाओ पा जी "


" अरे कैसे भांगड़ा पाऊं यार । कोरोना की दहशत कुछ करने ही कहां देती है " ?


" भूल जाओ पा जी कोरोना को । खबर ही कुछ ऐसी है कि आप सुनोगे तो आप भी डांस करने लगोगे, डांस " वह खुशी से झूमते हुए बोला


मैंने चिढ़कर कहा , " पहेलियां ही बुझाता रहेगा या कुछ दस्सेगा भी "


" भाईसाहब, सरकार अब लॉकडाउन 3.0 में शराब की दुकानें खोलने जा रही है और ये समाचार पढ़कर मेरे तो पांव रुक ही नहीं रहे हैं । "


अब जाकर सारा मजमून समझ में आया था । मैंने मन ही मन सरकार को कोसा । हरदम भेदभाव करती है यह हम चाय पीने वाले लोगों के साथ । इनके लिए तो दारू की दुकानें खुलवा दीं पर हमारे लिए चाय / लस्सी की एक दुकान तक नहीं खुलवाई ? अब महसूस होने लगा कि वास्तव में शराब कितनी महान है और चाय कितनी तुच्छ ?


पियक्कड़ सिंह की गिनती वी आई पी लोगों में होती है और हमारी गिनती आम लोगों में । कारण कि वह "सुरापान" करता है और हम ? हम अभी तक चाय पर ही अटके पड़े हैं ।  सरकार में बैठे सब नेता , अफसर , बड़े व्यवसायी , पत्रकार , कलाकार सबकी संजीवनी बूटी यह " शराब " ही तो है । इन लोगों ने डेढ़ माह से एक बूंद तक गले से नीचे नहीं उतारी है । कितना महान त्याग किया है इन लोगों ने । ये त्याग तो प्रधानमंत्री की कुर्सी त्यागने से भी बड़ा त्याग है । इस त्याग के चर्चे तो संपूर्ण भू लोक , स्वर्ग लोक और,पाताल लोक में होने चाहिए।  इस अद्वितीय त्याग को देखकर मेरा मस्तक इन महानुभावों के प्रति स्वत: ही श्रद्धा से झुक गया ।


अब कोरोना से लड़ने के लिए लोगों की ऊर्जा खत्म हो चुकी थी । बैटरी को रीचार्ज करना आवश्यक हो गया था । बिना रीचार्ज किए मोबाइल एक दिन भी नहीं चलता , ये बेचारे तो करीब डेढ़ महीने से चल रहे हैं । इसलिए इनको तो उसकी बहुत आवश्यकता है । पियक्कड़ सिंह भी उन लोगों की जमात में शामिल हो गया जो 'अंगूर की बेटी' के आशिक हैं । ये सब वी आई पी लोग हैं । अपना क्या है अपुन आम आदमी हैं और आम आदमी की औकात ही क्या है इस देश में ? महज कुर्सी प्राप्त करने का साधन ।


लॉकडाउन लगने के तीन चार दिन बाद ही पियक्कड़ सिंह की तबीयत खराब हो गई थी । हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा था उसको । दो तीन दिन आई सी यू में रहा था वह । मगर उसा कोई फायदा नहीं हुआ । लगा कि भक्त और भगवान का संबंध यहीं तक था । अचानक मुझे याद आया कि पियक्कड़ सिंह तो बिना पिये एक मिनट भी नहीं रह सकता है । जब से लॉकडाउन हुआ है , इसके हलक में दारू की एक बूंद तक नहीं गयी है । क्या पता उसी के कारण इसकी तबीयत खराब हो । शायद दारू का "डिहाइड्रेशन" हो गया हो ?


मैंने निराशा भाभी को कहा कि आप के पास दारू की कोई बोतल वोतल है क्या ? मेरी यह बात सुनकर उन्होंने मुझे आग्नेय नेत्रों से  देखा । मैंने बात संभालते हुए कहा कि इनको इस वक्त उसी बोतल की जरूरत है । थोड़ी सी दारू अगर अंदर चली गई तो संभवतः ये जी जाये नहीं तो ...


वे तुरंत समझ गईं । उन्होंने कहा कि हां, कुछ बोतलें मैंने इनसे छिपा कर रख दीं थीं । इनको उन बोतलों का पता नहीं है ।


मैंने राहत की सांस ली और भारतीय नारियों पर गर्व महसूस किया । मुझे पता है कि भारतीय नारियां चोरी चोरी कुछ कुछ "माल" छिपाती जरूर हैं । जब सभी ऐसा करती हैं तो निराशा भाभी भी जरूर करती होंगी । संकट के समय में देवियां ही प्राण बचातीं हैं । चोरी चोरी ही सही कुछ पैसा बचाकर अपने पास रखतीं है जो आपातकाल में हमारे काम आता है । इसलिए मैंने सोचा कि भाभीजी ने आपात काल के लिए कुछ बोतलें भी छिपा कर जरूर रखीं होंगी क्योंकि आदतें बदलतीं नहीं हैं । उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ बोतल उन्होंने छिपा कर अपनी वार्डरोब में रख रखी हैं । मुझे लगा कि अब इस "सत्यवान" को भाभीजी रूपी "सावित्री" यमराज से छीन कर लें आयेंगी ।


मैंने कहा कि इन्हें तुरंत डिस्चार्ज करवा कर घर ले चलो । घर पर एक दो बोतल दारू की चढवा देंगे तो शायद यह ठीक हो जाये । उन्होंने भी तुरंत सहमति दे दी।


घर ले जाकर उनको पहले व्हिस्की का एक पव्वा चढ़ाया गया । व्हिस्की का रस जैसे ही उसकी रगों में मिला उनके शरीर में हरकत होने लगी । फिर स्काॅच की बोतल चढ़ाई गई । स्कॉच के तो नाम में ही जादू है, तुरंत असर हुआ और उन्होंने आंखें खोल दी । वोदका के अंदर जाते ही तो वे उठकर बैठ गये । मैं भी मान गया कि कोई जमाने में संजीवनी बूटी हिमालय में उगती थी आज यह "संजीवनी बूटी" बोतल में बंद होकर गली गली में मिलती है । ऐसी संजीवनी बूटी उपलब्ध करवा कर सरकार ने न जाने कितने पियक्कड़ सिंहों के प्राण बचा लिये । सच में आज यही शराब लोगों की लाइफ लाइन बन गई है ।


पियक्कड़ सिंह के ठीक होने के बाद भाभीजी उसे रोज चखना खिलाती हैं और चुपके से उसमें कुछ बूंदें व्हिस्की की छिड़क देती हैं गंगाजल की तरह । बस उसी से जिंदा रहता आया है ये आज तक ।


फिर मुझे ध्यान आया कि जयपुर तो रैड जोन में है और रैड जोन में तो शराब की दुकानें बंद ही रहेंगी । यही आदेश है अभी तो । तो फिर ये पियक्कड़ सिंह इतना भांगड़ा क्यों कर रहा है । मैंने अपनी जिज्ञासा उसे बताई तो वह बोला


भाईसाहब , माना कि अपना जयपुर रैड जोन में है लेकिन पड़ौसी जिले दौसा, टोंक, अलवर , सीकर तो औरेंज जोन में है । वहां तो खुलेंगी ये दुकानें । बस अपना तो काम बन जाएगा ।


मैंने कहा कि ये सभी जिले जयपुर से कम से कम 50 किलोमीटर दूर हैं । कैसे लायेगा ? लॉकडाउन भी तो है अभी भी ?


वो जोर से हंसा । कहने लगा । मेरे पिताजी कहा करते थे कि


रम , स्काच पांच कोसी , शैम्पेन पूरे बीस ।


जो मिल जाए वोदका , तो दौड़ूं कोस तीस ।।


अर्थात , रम स्कॉच के लिए 5 कोस , शैंपेन के लिए 20 कोस और वोदका के लिए 30 कोस तक दौड़ सकता हूं । भाईसाहब , मैं अपने बाप का बेटा हूं ।माना कि उन जैसा पियक्कड़ नहीं हूं मगर  उनसे कम भी तो नहीं हूं  । अगर वे तीस कोस अर्थात 100 किलोमीटर दौड़ कर दारू ला सकते थे तो मैं तो 150 किमी तक दौड़ सकता हूं । पड़ौसी जिले इससे ज्यादा दूर तो नहीं हैं ना ।


मुझे पियक्कड़ सिंह की क्षमता पर कोई संदेह नहीं था । लेकिन मुझे लगा कि एक ही ब्रांड पीते पीते बोर नहीं हो जायेगा वो ? इसलिए पूछ ही लिया । वो बोला

"आप रोजाना चाय पीते हो ? एक ही चीज दिन में चार बार पीते हो ?  कभी बोर हुए हो  उससे" ?


उसके अकाट्य तर्क के सामने मैं ढेर हो गया । कुछ कह पाता उससे पहले ही वो बोला

" मैंने सब इंतजाम कर लिया है, भाईसाहब । बकार्डी रम और जानी वाकर स्काॅच टौंक से, रायल स्टैग , इंपीरियल ब्लू , मैकडोनाल्ड नंबर वन और ऑफीसर्स चॉइस व्हिस्की अलवर से , ग्रीन मार्क , एब्सोल्यूट, स्मिरनोफ वोदका सीकर से शोचू , जिन , टकीला वगैरह दौसा से ले आऊंगा । सच में जिंदगी फिर से बन जायेगी अपनी तो । अब आयेगा मजा । "


अब तो मुझे अपनी हैसियत पर बहुत शर्म आने लगी । मुझे लगा कि पियक्कड़ सिंह उन लोगों में से हैं जो सदियों से पीते रहे और बरसों तक राज करते रहे । मैं बेचारा वह चायवाला हूं जो पहले भी चायवाला था और आज भी चायवाला ही है ।


अब मैं भी भांगड़ा करके उसकी खुशी में चार चांद लगाने लगा । मैंने भी भांगड़ा शुरू कर दिया और गाने लगा


"मुझको यारो माफ करना , मैं नशे में हूं"



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7 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 12:52 PM

Shandar 👌

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shweta soni

20-Sep-2022 12:27 AM

Very nice

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Gunjan Kamal

12-Jul-2022 12:13 AM

बेहतरीन

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